गुरुवार, 12 नवंबर 2009

वन की व्यथा



कट रहे वन उपवन

बना जीवन विजन।

सुख शांति का आगार

बना कारागार

साकार बने निर्जन।

न रहे, वन सघन

न रहे, लता-विटप-सुमन

न रहे, बनपाखी कूंजन-गुंजन

न रहे, स्वजन-परिजन, अमन

व्यथा जन-जन

मन की कहे-

अनमने-भरे-तपे, दुखे

तपोधन-तपोवन।

कटे, कट रहे, वन-उपवन।

व्यथा सबकी कहे,

सूखे-झुलसे

जले वन

कटे, कट रहे, वन-उपवन।

-डॉ. राम स्वार्थ ठाकुर

रविवार, 8 नवंबर 2009

सपने में सपना




सपने में आना सपना
मोबाइल का रिंगटोन
देता है तेरी दस्तक
तेरे आने की आहट
तेरी हंसी की खनक
तेरी पायल की झनकार
आधी रात के बाद भी
रहता है इंतजार
उस रिंगटोन का
जिसमें छुपी है
तेरी आहट
बढ़ जाती है दिल की धड़कन
गायब है नींद
स्याह रातों में
नजर आती है
रोशनी की एक किरण
एक ख्बाब की अनजानी राह
तर्क के तराजू पर
शून्य है भार
दिल के दामन पर
मेरा अपूर संसार
मेरे दिल की पुकार
मेरी तमन्ना
मेरा सपना
....
बातों का वो
सिलसिला अनजाना
जोड़ गया
जिंदगी की किताब में
नए पन्ने
बस गया
सतरंगी संसार
बादलों में खोया हुआ
मैं सो गया
ख्वाब में खो गई रात
खिड़की से झांकती नई सुबह
की घूप ने
तोड़ दिया
सपना मेरा अपना