Pillers of beauty demolished!
दोस्तो, आपको याद है ये जगह ? ये वो जगह है, जहां आपने न जाने कितने सपने बुने होंगे, ये वो जगह है, जहां तैयार हुई होगी आपकी जिंदगी की रूपरेखा..ये जेएनयू का स्कूल कॉम्प्लेक्स है, स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज़ और एसआईएस के सामने का हिस्सा..यहां कुछ दिनों पहले तक खंबे हुआ करते थे और उन खंबों पर झूलती थीं फूलों की लताएं..लेकिन अब वो सब नहीं है यहां, उन खूबसूरत खंबों को गिरा दिया गया है, शायद उनकी जगह खुला आसमान रहे, या फिर कोई और स्ट्रक्चर खड़ा किया जाए..कुछ लोगों का कहना है कि खंबे पुराने पड़ चुके थे, जर्जर होकर ढह रहे थे, इसलिए उन्हें गिराया गया..तो कुछ लोग ऐसा भी मानते हैं कि
यूनिवर्सिटी के पास बहुत ज्यादा पैसा होगा, जिसका कुछ न कुछ इस्तेमाल करने की जुगत में इन खंबों को गिराया गया होगा..बहरहाल इस पूरी कवायद के पीछे वजहें जो भी हों, लेकिन एक खूबसूरत संरचना अब इतिहास के गर्त में जरूर चली गई है..कुछ दोस्तों के पास अगर जेएनयू की पुरानी तस्वीरें होंगी, तो वो उन खूबसूरत स्तंभों और उन पर झूलती लताओं को याद कर सकते हैं, जिनके सहारे उन्होंने कैंपस में अपने दिन गुजारे होंगे...अपने जीवन की तैयारी की होगी, तेज़ धूप के दौरान उनकी छांव में कुछ पल बैठे होंगे, या रात के पिछले पहर में भी यहां इन टूटी हुई सीढ़िय़ों से सटे खंबों के सहारे बैठकर बिताए होंगे कुछ यादगार पल...स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज से लेकर स्कूल ऑफ
एनवायरनमेंटल साइंस तक जाने का पूरा रास्ता खंबों पर बने ढांचे पर झूलती फूलों की लताओं से आच्छादित हुआ करता था..जो अब नहीं है..बारिश के दौरान बूंदों से बचने की ये राह थी, जिसकी कमी जरूर खलेगी..कड़ी धूप में भी छात्र-छात्राओं को इस राह पर तरावट का एहसास होता था...और भी तमाम यादें बहुत से दोस्तों के पास होंगी..लेकिन वो अब इतिहास हैं...शायद जेएनयू प्रशासन के पास आनेवाली पीढ़ियों के लिए कुछ नया करने, नए रंग-रूप वाले नए ढांचे में कुछ नया कर दिखाने की योजना होगी..लेकिन जेएनयू में जिंदगी के एक दशक या उससे ज्यादा बिता चुके लोगों के लिए इस राह पर हुआ बदलाव एक ऐसा एहसास है..जिसके बगैर वो कैंपस को अधूरा ही मानेंगे..... कहने को बहुत कुछ है...लिखने को काफी कुछ है...शेष रह जाएंगी सिर्फ यादें...जो कैंपस में
आनेवाला हर शख्स अपने साथ लेकर जाता है...
26.08.2013 दोपहर 2 बजे, जेएनयू कैंपस
दोस्तो, आपको याद है ये जगह ? ये वो जगह है, जहां आपने न जाने कितने सपने बुने होंगे, ये वो जगह है, जहां तैयार हुई होगी आपकी जिंदगी की रूपरेखा..ये जेएनयू का स्कूल कॉम्प्लेक्स है, स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज़ और एसआईएस के सामने का हिस्सा..यहां कुछ दिनों पहले तक खंबे हुआ करते थे और उन खंबों पर झूलती थीं फूलों की लताएं..लेकिन अब वो सब नहीं है यहां, उन खूबसूरत खंबों को गिरा दिया गया है, शायद उनकी जगह खुला आसमान रहे, या फिर कोई और स्ट्रक्चर खड़ा किया जाए..कुछ लोगों का कहना है कि खंबे पुराने पड़ चुके थे, जर्जर होकर ढह रहे थे, इसलिए उन्हें गिराया गया..तो कुछ लोग ऐसा भी मानते हैं कि
यूनिवर्सिटी के पास बहुत ज्यादा पैसा होगा, जिसका कुछ न कुछ इस्तेमाल करने की जुगत में इन खंबों को गिराया गया होगा..बहरहाल इस पूरी कवायद के पीछे वजहें जो भी हों, लेकिन एक खूबसूरत संरचना अब इतिहास के गर्त में जरूर चली गई है..कुछ दोस्तों के पास अगर जेएनयू की पुरानी तस्वीरें होंगी, तो वो उन खूबसूरत स्तंभों और उन पर झूलती लताओं को याद कर सकते हैं, जिनके सहारे उन्होंने कैंपस में अपने दिन गुजारे होंगे...अपने जीवन की तैयारी की होगी, तेज़ धूप के दौरान उनकी छांव में कुछ पल बैठे होंगे, या रात के पिछले पहर में भी यहां इन टूटी हुई सीढ़िय़ों से सटे खंबों के सहारे बैठकर बिताए होंगे कुछ यादगार पल...स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज से लेकर स्कूल ऑफ
एनवायरनमेंटल साइंस तक जाने का पूरा रास्ता खंबों पर बने ढांचे पर झूलती फूलों की लताओं से आच्छादित हुआ करता था..जो अब नहीं है..बारिश के दौरान बूंदों से बचने की ये राह थी, जिसकी कमी जरूर खलेगी..कड़ी धूप में भी छात्र-छात्राओं को इस राह पर तरावट का एहसास होता था...और भी तमाम यादें बहुत से दोस्तों के पास होंगी..लेकिन वो अब इतिहास हैं...शायद जेएनयू प्रशासन के पास आनेवाली पीढ़ियों के लिए कुछ नया करने, नए रंग-रूप वाले नए ढांचे में कुछ नया कर दिखाने की योजना होगी..लेकिन जेएनयू में जिंदगी के एक दशक या उससे ज्यादा बिता चुके लोगों के लिए इस राह पर हुआ बदलाव एक ऐसा एहसास है..जिसके बगैर वो कैंपस को अधूरा ही मानेंगे..... कहने को बहुत कुछ है...लिखने को काफी कुछ है...शेष रह जाएंगी सिर्फ यादें...जो कैंपस में
आनेवाला हर शख्स अपने साथ लेकर जाता है...
26.08.2013 दोपहर 2 बजे, जेएनयू कैंपस