रविवार, 22 सितंबर 2024

मोदी की अमेरिका यात्रा: क्या दिया, क्या हासिल किया?

(चित्र साभार गूगल)
दिल्ली से डेलावेयर की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमेरिका यात्रा का पहला चरण सफलतापूर्वक संपन्न हो गया। सफलतापूर्वक कहने का अर्थ यह है कि यात्रा के पहले चरण में पीएम मोदी का जो एजेंडा था, उसमें उन्होंने कामयाबी हासिल की, ऐसा माना जा सकता है। शनिवार को दिल्ली से डेलावेयर पहुंचने पर पीएम मोदी का भव्य स्वागत हुआ। होना भी था क्योंकि वहां के जिस ड्यूपोंट होटल में वे ठहरे वहां उनके पहुंचने के वक्त भारतीय समुदाय के लोग पहले से पलक-पांवड़े बिछाए मौजूद थे। कहने वाले कह सकते हैं कि यह प्रायोजित रहा होगा, लेकिन कहने वालों का क्या? पीएम के स्वागत के लिए जो उत्साह लोगों के चेहरों पर नज़र आया उसे कतई बनावटी नहीं कहा जा सकता। 
डेलावेयर में प्रधानमंत्री मोदी की पहली बैठक अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ थी। जल्द ही राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त होने जा रहे बाइडेन जितनी गर्मजोशी से मोदी से मिले वह भी उल्लेखनीय है। मोदी और बाइडेन की शानदार केमिस्ट्री पहले भी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दिखी है और दोनों नेता अक्सर बेहतर बेतकल्लुफी से और दोस्ताना अंदाज में मिलते रहे हैं। बहरहाल रिपोर्ट्स की मानें तो डेलावेयर की मुलाकात और वार्ता में खास यह हुआ कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापक रक्षा सहयोग पर बात हुई। इसमें खास किस्म के ड्रोन का सौदा भी शामिल है। इतना ही नहीं बाइडेन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार और भारत की स्थायी सदस्यता की दावेदारी का समर्थन भी किया। बाइडेन भले ही अब जाने वाले हैं, लेकिन इसे अमेरिका का रुख तो कहा ही जाएगा जो भारत के पक्ष में है। हालांकि अमेरिका में नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव के बाद यदि सत्ता में बदलाव होता है तो अमेरिका का इस दिशा में क्या रुख होगा, यह देखना दिलचस्प होगा। वैसे गौरतलब यह भी है कि अगले साल भारत में होने वाले क्वाड शिखर सम्मेलन में अमेरिका के नये राष्ट्रपति भाग लेंगे चाहे ट्रंप हों या कमला हैरिस। 
बाइडेन के साथ बैठक के बाद क्वाड शिखर सम्मेलन में भी संयुक्त राष्ट्र में सुधारों पर सहमति जताई गई जिसका निहितार्थ यही है कि भारत की बड़ी भूमिका यानी सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के मुद्दे पर क्वाड के बाकी तीनों सदस्य देश सहमत हैं। 
क्वाड के मंच से पीएम मोदी ने नाम लिए बगैर चीन को संदेश दिया कि यह संगठन किसी के खिलाफ नहीं है और शांतिपूर्ण-समावेशी हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।
क्वाड की ओर से इस बार हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में कैंसर की रोकथाम के लिए कैंसर मूनशॉट इनिशिएटिव शुरू किया गया है। पीएम मोदी ने भारत के वन अर्थ-वन हेल्थ विजन का उल्लेख करते हुए भारत की ओर से इस पहल के लिए ७५ लाख डॉलर का पैकेज और ४ करोड़ वैक्सीन डोज देने की बड़ी घोषणा की। इससे हज़ारों जानें बचाई जा सकेंगी। © कुमार कौस्तुभ 

शुक्रवार, 20 सितंबर 2024

UN में इस बार क्या बोलेंगे मोदी?

संयुक्त राष्ट्र महासभा के ७९वें सत्र के लिए पीएम मोदी का एजेंडा
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संयुक्त राष्ट्र महासभा के 79वें सत्र की शुरुआत १० सितंबर से हो चुकी है। इसमें २२ और २३ सितंबर को समिट ऑफ फ्यूचर यानी भविष्य से जुड़े वैश्विक मुद्दों पर चर्चा होगी और समस्याओं के बहुपक्षीय समाधान तलाशने पर चर्चा हो सकती है। इस शिखर सम्मेलन में तमाम राष्ट्राध्यक्ष भाग लेंगे। इसके बाद २४ से २८ सितंबर तक जनरल डिबेट का कार्यक्रम निर्धारित है। २१ सितंबर को अमेरिका यात्रा पर जा रहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी २३ सितंबर को यूएन के समिट ऑफ फ्यूचर को संबोधित करने वाले हैं तो देश ही नहीं पूरी दुनिया की निगाहें उनके भाषण पर होंगी और सभी यह जानना चाहते होंगे कि आखिर इस बार मोदी संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच से विश्व को क्या संदेश देते हैं?
खास मुद्दों पर केंद्रित कतिपय बैठकों को छोड़ दें तो यह छठा मौका होगा जब मोदी संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करने जा रहे हैं। इस दरम्यान भारत की सत्ता में अपने दस वर्षों के कार्यकाल के दौरान पीएम मोदी ने वैश्विक मंचों पर अपनी अलग पहचान बनाई है। तो इस बार मोदी यूएन में क्या बोलेंगे और यूएन के लिए उनका क्या संदेश होगा इस पर चर्चा से पहले यह भी जान लेना चाहिए कि विगत दस वर्षों में मोदी ने इस मंच पर क्या-क्या कहा है।
2014 में भारत के प्रधानमंत्री के रूप में मोदी ने पहली बार यूएन महासभा को संबोधित किया था तो उन्होंने में आतंकवाद से निपटने के लिए व्यापक समझौते की बात की थी। उन्होंने तब संयुक्त राष्ट्र में सुधार का भी मुद्दा उठाया था। वैश्विक खुशहाली के लिए उन्होंने दुनिया के देशों से योग को अपनी जीवन शैली में शामिल करने की अपील की जिसके फलस्वरूप २०१५ से अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने की परंपरा शुरू हुई।
को अपनाने की दिशा में काम करें।
2015 में 25 सितम्बर को पीएम मोदी ने संयुक्त राष्ट्र सतत विकास शिखर सम्मेलन में भाग लिया और यह संदेश दिया कि हम एक ऐसे विश्व का निर्माण करें जहां प्रत्येक जीव मात्र सुरक्षित महसूस करे, उसे अवसर उपलब्ध हों और सम्मान मिले। संयुक्त राष्ट्र में अपने दूसरे संबोधन में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की विश्वसनीयता बरकरार रखने के लिए इसमें सुधार अनिवार्य है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 के बाद 2019 के संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिस्सा लिया। 2019 में पीएम मोदी ने संयुक्त राष्ट्र के मंच से संदेश दिया कि दुनिया को युद्ध नहीं, बुद्ध चाहिए। आतंकवाद के मुद्दे पर हमारे बीच सर्वसम्मति का अभाव, उन सिद्धांतों को नुकसान पहुंचाता है, जो संयुक्त राष्ट्र के निर्माण का आधार हैं। और इसीलिए, मानवता के लिए, यह अत्यंत आवश्यक है कि विश्व आतंकवाद के विरुद्ध एकजुट हो।
2020 में सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य बनने के बाद भारत की ओर से पहले संबोधन में पीएम मोदी ने फिर से संयुक्त राष्ट्र में सुधार का मुद्दा उठाया और कहा कि संयुक्त राष्ट्र में सुधार “समय की मांग” है।
२०२० में अपने संबोधन में पीएम मोदी ने कोविड से जूझ रहे विश्व में संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रासंगिकता का मुद्दा उठाया और सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्यता पर जोर दिया
2021 में पीएम मोदी ने सुरक्षा परिषद में समुद्री सुरक्षा बढ़ाने पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता के मुद्दे पर व्यापक संदर्भ में साझा समुद्री विरासत के संरक्षण और उपयोग के लिए आपसी समझ और सहयोग की रूपरेखा बनाने की अपील की। इस संबंध में पीएम मोदी ने पांच सिद्धांतों का उल्लेख किया जिनके अनुसार, वैध समुद्री व्यापार से बाधाओं को हटाना, SAGAR – (Security and Growth for All in the Region) के विजन, समुद्री विवादों का निपटारा शांतिपूर्ण और अंतरराष्ट्रीय कानून के आधार पर किए जाने, मिलकर प्राकृतिक आपदाओं और नॉन-स्टेट एक्टर्स द्वारा उत्पन्न समुद्री खतरों का सामना करने,समुद्री पर्यावरण और समुद्री संसाधनों को संरक्षित करने पर ध्यान देना चाहिए।
2021 में संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने संदेश दिया कि विकास, सम्पूर्ण समावेशी, व्यापक दायरे वाला, सार्वभौमिक और ऐसा होना चाहिये जिससे सभी का भला हो. उन्होंने कहा कि भारत एकीकृत व समान विकास के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है. आतंकवाद का मुद्दा उठाते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि ये सुनिश्चित किया जाना बहुत ज़रूरी है कि अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल, आतंकवाद फैलाने या आतंकी हमले करने के लिये ना हो. उन्होंने आगाह किया कि जो देश आतंकवाद को एक राजनैतिक औज़ार के रूप में इस्तेमाल करते हैं, उन्हें यह समझना होगा कि आतंकवाद, ख़ुद उनके लिये भी उतना ही गम्भीर ख़तरा है. अपने संबोधन में पीएम मोदी ने एक बार फिर से संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता और प्रभावशीलता का मुद्दा उठाया।
2022 और 2023 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने किया।
अब 2024 में पीएम मोदी एक बार फिर से संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करने जा रहे हैं तो उनके एजेंडे में विश्व शांति का मुद्दा तो अहम रहेगा ही, इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए क्योंकि पिछले दिनों मोदी रूस और यूक्रेन की यात्रा से लौटे हैं तो साथ ही साथ इज़राइल और फिलिस्तीन के हमास, यमन के हूती और लेबनान के हिज्बुल्लाह गुट के आतंकियों के बीच संघर्ष भी बढ़ा है। भारत हमेशा शांति का पक्षधर रहा है। इसलिए जाहिर है पीएम मोदी संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक मंच से शांति का संदेश जरूर देंगे। वे जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े मुद्दों पर भी चर्चा कर सकते हैं और इन क्षेत्रों में भारत की ओर से उठाए गए कदमों से दुनिया को अवगत करा सकते हैं। साथ ही साथ पीएम मोदी अल्प विकसित, पिछड़े और विकासशील देशों यानी ग्लोबल साउथ से जुड़े मुद्दों पर भी चर्चा कर सकते हैं। भारत में हुए जी 20 सम्मेलन में पीएम ने इससे जुड़ी चर्चा की थी और उसके बाद वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ सम्मेलन में भी इन देशों को विकास का समान लाभ मिले, इसकी पैरोकारी की थी। वहीं, संयुक्त राष्ट्र में सुधार का मुद्दा भी पीएम मोदी के एजेंडे में प्राथमिकता में रहेगा क्योंकि मोदी हमेशा इस मंच पर भारत की महत्वपूर्ण और बड़ी भूमिका पर जोर देते रहे हैं। बीते वर्षों में मोदी के नेतृत्व में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की मुहिम को भरपूर समर्थन भी मिला है तो वे पुनः इस विषय पर बात करने से नहीं हिचकेंगे ताकि दुनिया के बड़े देश इसकी अहमियत को समझें और भारत को वह सम्मान प्रदान करें जिसका वह हकदार है। © कुमार कौस्तुभ

गुरुवार, 19 सितंबर 2024

क्वाड से क्या मिलेगा?

 


अमेरिका यात्रा पर जा रहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के एजेंडे में सबसे ऊपर डेलवेयर में होने वाली क्वाड की बैठक है। २१ सितंबर को क्वाड की बैठक की मेजबानी अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन करने वाले हैं। भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री इसमें भाग लेंगे। क्वाड की इस तरह की यह चौथी बैठक होगी जिसमें चारों देशों के शीर्ष नेता शामिल होने जा रहे हैं। 

क्वाड का अर्थ है क्वाड्रिलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग यानी चार देशों के बीच सुरक्षा संबंधी मामलों पर संवाद। इसका उद्देश्य हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता से जुड़े मुद्दों पर विचार-विमर्श करना है ताकि इस क्षेत्र में चीन के दबदबे को बढ़ने से रोका जा सके और समुद्री मार्ग से व्यापार सुचारू रूप से चल सके। इस मायने में अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की जापान और भारत के साथ चौकड़ी बेहद जरूरी और महत्वपूर्ण है जबकि जापान और भारत की अपनी सुरक्षा संबंधी चिन्ताएं भी इससे जुड़ी हैं क्योंकि ये दोनों न केवल एशिया के दिग्गज देश हैं बल्कि चीन के निकट पड़ोसी भी हैं। तो समुद्री क्षेत्र में चीन की गतिविधियों के लिहाज से यह स्थिति भू-राजनीतिक दृष्टि से बहुत अहम है, क्योंकि जब अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया-जापान और भारत यानी क्वाड के चार यार एक साथ बैठकर चर्चा करते हैं तो चीन की भौंहें तन जाती हैं और उसे लगता है कि उसके खिलाफ कोई नई रणनीति बनाई जा रही है, जो स्वाभाविक भी है क्योंकि आखिरकार चीन इन चारों देशों का मुख्य दुश्मन तो है ही। यही वजह है कि बीते वक्त में क्वाड देशों के समुद्री सैन्य अभ्यासों पर चीन ऐतराज भी जताता रहा है।

हालांकि गौरतलब यह भी है कि तमाम तरह की तनातनी और आपसी हितों के टकराव के बावजूद पिछले दिनों चीन-अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया-चीन के बीच द्विपक्षीय रिश्तों को सुधारने के प्रयास हुए हैं ताकि व्यापारिक हितों को नुक़सान न हो। वहीं, पिछले दिनों आपसी सहयोग के रास्ते खोलने के लिए जापान-चीन-कोरिया की त्रिपक्षीय वार्ता भी हुई। जबकि भारत के साथ चीन के संबंधों का स्तर मिला-जुला है। कई सामग्रियों के आयात में चीन पर भारत की निर्भरता कम करने के प्रयास हुए हैं तो साथ ही साथ सीमा पर चीन की चालों को नाकाम करने की भी कोशिश जारी है।

भले ही अमेरिका में इस बार क्वाड की बैठक हो रही है और अगले साल भारत इस बैठक की मेजबानी करने वाला है, लेकिन एक बात समझनी होगी कि इस संगठन के सभी देश अपना हित प्रथम की ही नीति पर चलेंगे। चारों देशों के नेताओं के एक साथ बैठ कर चीन पर मानसिक दबाव बढ़ाना इनकी सफलता मानी जा सकती है। वहीं यह भी ध्यान में रखना होगा कि क्वाड से भारत को क्या हासिल होता है। यह संगठन बेमानी इस मायने में नहीं कहा जा सकता है कि इसके जरिए इसके चारों सदस्य देशों के बीच बेहतर तालमेल बना है जिसके कारण रक्षा और व्यापारिक रिश्तों में बढ़ोतरी जरूर हुई है। परन्तु, यह भी देखना होगा कि क्वाड अभी चीन के लिए चुनौती भले ही पेश करता दिखे, पर इसकी सफलता तभी साबित होगी जब इसकी ताकत और रणनीति के समक्ष चीन घुटने टेक दे। इसके लिए भारत को हर हाल में महाशक्ति बनना होगा।© कुमार कौस्तु

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बुधवार, 18 सितंबर 2024

मोदी की अमेरिका यात्रा - किसका फायदा?

 मोदी की US यात्रा: किसका फायदा?

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी २१ सितंबर से २३ सितंबर तक अमेरिका यात्रा पर रहेंगे। वैसे तो प्रधानमंत्री की इस अमेरिका यात्रा का कार्यक्रम बड़ा स्पष्ट है - उन्हें डेलवेयर में क्वाड की बैठक में भाग लेना है, जहां राष्ट्रपति जो बाइडेन से उनकी मुलाकात होगी और अगले वर्ष भारत में होने वाले क्वाड शिखर सम्मेलन की रूपरेखा तय हो सकती है जिसमें बाइडेन के उत्तराधिकारी, अमेरिका के अगले राष्ट्रपति भाग ले सकते हैं, चाहे वो कमला हैरिस हों या बाइडेन के धुर विरोधी डॉनल्ड ट्रंप हों। इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री मोदी न्यूयॉर्क में प्रवासी भारतीयों से भी मिलेंगे और उन्हें संबोधित करने वाले हैं। लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी की अमेरिका में भारतीयों से मुलाकात के बाद अब पीएम मोदी वहां भारतीय समुदाय से रूबरू होंगे तो देखना दिलचस्प होगा कि राहुल के मुकाबले उनके तेवर कैसे रहते हैं। हालांकि इससे पूर्व अमेरिका या दूसरे देशों की यात्राओं में जब मोदी भारतवंशियों के समक्ष खड़े होते रहे हैं तो उनका उद्देश्य अधिकतर  भारतीयता की गौरवशाली विरासत और राष्ट्रवाद की बात करते हुए सरकार की उपलब्धियों की चर्चा करना ही रहा। इस दौरान विरोधियों पर निशाना भी वे साधते हैं लेकिन उस तरह के शिकायती लहजे में नहीं जैसे कि राहुल गांधी। बहरहाल, दोनों नेताओं के अपने अपने तरीके हैं, उद्देश्य हैं, परिप्रेक्ष्य हैं जिनके आधार पर वे विदेश में भारतीय समुदाय से मिलते हैं। कहना न होगा कि राहुल गांधी के मेल-जोल का दायरा सीमित रहा है, वे यूनिवर्सिटी और संस्थाओं में बुद्धिजीवी वर्ग तक अपनी बात पहुंचाने में तत्पर दिखे, जबकि मोदी से मिलने वालों में हर आम और खास होते हैं। वे एयरपोर्ट और होटल में आम लोगों से घुलते-मिलते हैं और विशाल हॉल में उन्हें संबोधित करते हैं तो दिग्गज कारोबारियों और सीईओ के साथ भी बैठकें करते हैं। इस बार की यात्रा में भी ऐसी बैठकें तय हैं। साथ ही मोदी संयुक्त राष्ट्र महासभा को भी संबोधित करने वाले हैं जो उनका कूटनीतिक और राजनयिक दायित्व है।

दिलचस्प बात यह है कि मोदी की अमेरिका यात्रा ऐसे समय में हो रही है जब अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की सरगर्मी जोर पकड़ चुकी है। राष्ट्रपति चुनाव में एक तरफ भारतवंशी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस हैं तो दूसरी तरफ हैं डॉनल्ड ट्रंप जो २०१७ से २०२१ तक अमेरिका के राष्ट्रपति रहे हैं। अपनी तीखी जुबान और विवादित जीवन और बयानों के लिए चर्चित ट्रंप की पीएम मोदी के साथ शानदार केमिस्ट्री रही। दोबारा राष्ट्रपति चुनाव लड़ने से पहले २०१९ में ट्रंप ने टेक्सास में हाउडी मोदी कार्यक्रम करवाया था जिसका मकसद कहीं न कहीं मोदी के सहारे भारतवंशी मतदाताओं को रिझाना ही था। अगले ही वर्ष २०२० में अहमदाबाद के मोदी स्टेडियम में शानदार नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम करवा कर पीएम मोदी ने ट्रंप के सम्मान का प्रत्युत्तर दे दिया। हालांकि , अमेरिका में २०२० के राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप को मोदी से दोस्ती का कोई खास फायदा मिला हो, यह कहना मुमकिन नहीं। लेकिन इस बार जबकि ट्रंप एक बार फिर अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में हाथ आजमा रहे हैं तो उससे पहले होने जा रही अमेरिका यात्रा के दौरान उन्होंने मोदी से मिलने का एलान कर दिया है। ट्रंप ने मोदी को विलक्षण व्यक्ति करार देते हुए उनकी शान में कसीदे पढ़े तो साथ ही साथ नोट करने वाली बात यह भी है कि उन्होंने भारत पर सीधे निशाना भी साधा और भारत को नीतियों का दुरुपयोग करने वाला देश कह डाला। संभव है इस तरह की बयानबाजी से ट्रंप एक साथ दो निशाने साधने की कोशिश कर रहे हों - मोदी की तारीफ करके मोदी के मुरीदों का दिल जीतना और भारत पर आक्रामक तेवरों से अपनी अमेरिका फर्स्ट नीति पर डटे रहने की नुमाइश।

अब यह तो पीएम मोदी के ऊपर है कि वे ट्रंप के बयान को किस तरह लेते हैं। देखना होगा कि वे ट्रंप के साथ दोस्ती को सम्मान देते हुए देश के हितों को भी तरजीह देते हैं या भारतवंशी बेटी कमला हैरिस के समर्थन के प्रति रुझान दिखाते हैं ? कमला हैरिस से मोदी की मुलाकात होगी या नहीं यह अभी नहीं कहा जा सकता। हालांकि बाइडेन प्रशासन से भी भारत के रिश्ते मधुर ही रहे और ट्रंप से पहले राष्ट्रपति रहे ओबामा के साथ भी मोदी का बढ़िया संबंध रहा। तो कुल मिलाकर राष्ट्रपति कोई भी रहे,  इसमें कोई दो राय नहीं है कि पीएम मोदी अमेरिका के हर नेतृत्व को साधने में सफल रहे। वैसे यह भी स्पष्ट है कि नेतृत्व बदलने से विदेश नीति नहीं बदला करती और दो देशों के रिश्ते नहीं बदल जाते। तो यह भी तय है कि मोदी भारत का हित देखेंगे और ट्रंप या हैरिस में से जो भी जीते वह अमेरिका के हितों में ही काम करेंगे। ऐसा नहीं है कि इस यात्रा में मोदी ट्रंप या हैरिस के चुनाव प्रचार का हिस्सा बन सकते हैं , हां दोनों नेताओं को उनकी शुभकामनाएं जरूर मिलेंगी ताकि भारत और अमेरिका के रिश्ते आगे भी मजबूत रहें क्योंकि वैश्विक परिदृश्य में दोनों शक्तियों का साथ एक-दूसरे के लिए बेहद जरूरी है, यह सभी जानते हैं, तभी तो रूस से नजदीकी के बावजूद भारत के साथ अमेरिका नरमी से ही पेश आता है।

प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा एक बार पुनः क्वाड और संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक मंचों पर भारत की धमक दिखाने का मौका है, जिसका वे बखूबी सार्थक उपयोग करेंगे, यह तय मानिए! © कुमार कौस्तुभ