सोमवार, 12 अक्तूबर 2009

बिंब और प्रतिबिंब

...
रोशनी के उजाले में
बना है प्रतिबिंब
सच्चाई की छाया
में छुपा है जीवन का बिंब
कड़क धूप की कंटीली चमक
बिंब को बेधने की करती है कोशिश
सूर्य की किरणों से
बार-बार लगतार
लड़ता है बिंब
चल रहा है चिरंतन युद्ध
बिंब को घेरते हैं
सूर्य के बाण
रश्मियों के रंग से
घिरा संग्राम
सिर से टपकती
पसीने की बूंदें
पिघलता है आसमान
क्षय होती है ऊर्जा
या
कुंदन बनता है बदन
मेहनत की मार से
भूख से लाचार
जीवन का कारोबार
लगातार..

क़यामत की बातें

...पिघल रहा है
ग्रीनलैंड का हेलहाइम ग्लेशियर
पिघल रहा है
गोमुख
अंटार्कटिका का भी
अंत आ गया क़रीब
क़यामत की बातें
करते वैज्ञानिक
खबर बनता शोध
प्रलय की आहट
अब दूर नहीं
मानवता का महाविनाश
क्या करे इंसान
बुद्धूबक्से पर बैठा उल्लू
डराता है
कहता है
हो जाओ सावधान
हो जाओ सतर्क
समेट लो अपना संसार
खत्म हो जाएगा घरबार
जब आएगा एक दिन
क़यामत का
भोला मन, क्या करे
कहां जाए, क्या खाए
अब दूर नहीं क़यामत
गर्म हो रही है धरती
पड़ जाएंगे खाने के लाले
कैसे भरेगा पेट
समंदर लील लेगा धरती को
सूर्य खा जाएगा हरियाली
धरती पर छानेवाला है अंधेरा
बुरा फंसा बेचारा
नहीं दिखती राह
बस एक आह
आखिर क्यों पैदा हुआ इंसान

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009

सो जाएंगे सिनेमाघर...

मोतिहारी के दो पुराने सिनेमाहॉल बंद होने की कगार पर है। दैनिक जागरण में इस सिलसिले में खबर पढ़कर एक बार फिर अपने शहर की पुरानी यादें ताजा हो गईं। करीब पांच से दस किलोमीटर के दायरे में फैले मोतिहारी शहर में गिनती के सिनेमाहॉ़ल हैं और हमारे जीवन की शुरुआत इन्हीं सिनेमाहॉल्स से जुड़ी है। पायल, संगीत, माधव, रॉक्सी और चित्रमंदिर- ये वो सिनेमाहॉल हैं, जहां मैंने फिल्में देखने के शगल की शुरुआत की..पहले मां और परिवारवालों के साथ, रिश्तेदारों-नातेदारों के साथ और फिर बाद में अपने दोस्तों-सहपाठियों के साथ। रॉक्सी वो सिनेमाहॉल है जिसमें अपने दोस्त प्रसून चौधरी के साथ 80 के आखिरी दशक में मैंने कई हॉरर फिल्में देखी होंगी..हैरत की बात ये है कि उस वक्त भी खस्ताहाल रहा ये सिनेमाहॉ़ल अब तक चलता रहा है..सुना था पिछले दिनों काफी वक्त बंद रहने के बाद ये फिर से शुरु हुआ था..लेकिन अब एक बार फिर ये बंदी की हालत में पहुंच चुका है...वही हाल चित्रमंदिर का,..शहर के मशहूर बलुआ चौक पर बना ये हॉल..अपने जमाने में चर्चित फिल्में दिखा चुका है.. वक्त के थपेड़ों ने शायद इसकी महलनुमा इमारत को तो नहीं हिलाया, लेकिन शायद इसके मालिकों के लिए अब इसे चलाना मुमकिन नहीं ..इन दोनों सिनेमाहॉल्स में बिजली गुल होने पर हम जनरेटर से लाइन आने का इंतजार भी किया करते थे..लेकिन अब वक्त बदल चुका है..शायद सिनेमाहॉल चलाना इन छोटे शहरों में फायदेमंद कारोबार नहीं रहा..टेलीविजन और वीडियो के बढ़े असर के साथ-साथ शहर में गुंडागर्दी के बढ़ते आलम ने लोगों की सिनेमा देखने सिनेमाहॉल जाने की आदत पर असर डाला है..मोतिहारी जैसे छोटे शहर में सिनेमाहॉल सिनेप्लेक्स में तब्दील नहीं हो सके..और मुझे नहीं लगता कि ऐसा हो भी सकेगा..क्योंकि इसके पीछे शहर की अर्थव्यवस्था और सामाजिक परिस्थितियां जिम्मेदार हो सकती हैं..अखबार की खबर के मुताबिक, राक्सी सिनेमा हाल पर 2006 से टैक्स बकाया है। वहीं वर्ष 2004 से हॉल के नवीकरण का मामला भी लंबित है। रॉक्सी पर बिजली विभाग का भी काफी बकाया है..ऐसा ही हाल चित्रमंदिर सिनेमाह़ल का भी है। पायल और संगीत दोनों हॉल एक ही कॉम्प्लेक्स में हैं और एक ही मालिक के हैं..जाहिर है मालिक की व्यापार बुद्धि की कुशलता के चलते दोनों हॉ़ल अब भी बेहतर हालत में चल रहे हैं और शहर के निम्न-मझोले तबके के लोगों के मनोरंजन का अड्डा बने हुए हैं। लेकिन, शहर में सिनेमाहॉल्स का जो हाल है, वो एक तरह से मोतिहारी में सिनेमा देखने की प्रवृति-संस्कृति और संस्कार पर सवाल खड़े करता है..इस सिलसिले में विस्तार से फिर कभी..फिलहाल तो आइए ..अपने शहर में सिनेमाहॉल की स्थिति पर थोड़ा दुखी हो लें..क्योंकि आज यहां चाहे जो भी हालात हों...हमने सिनेमा देखने का शगल तो यहीं से शुरू किया ...