सोमवार, 12 अक्तूबर 2009

क़यामत की बातें

...पिघल रहा है
ग्रीनलैंड का हेलहाइम ग्लेशियर
पिघल रहा है
गोमुख
अंटार्कटिका का भी
अंत आ गया क़रीब
क़यामत की बातें
करते वैज्ञानिक
खबर बनता शोध
प्रलय की आहट
अब दूर नहीं
मानवता का महाविनाश
क्या करे इंसान
बुद्धूबक्से पर बैठा उल्लू
डराता है
कहता है
हो जाओ सावधान
हो जाओ सतर्क
समेट लो अपना संसार
खत्म हो जाएगा घरबार
जब आएगा एक दिन
क़यामत का
भोला मन, क्या करे
कहां जाए, क्या खाए
अब दूर नहीं क़यामत
गर्म हो रही है धरती
पड़ जाएंगे खाने के लाले
कैसे भरेगा पेट
समंदर लील लेगा धरती को
सूर्य खा जाएगा हरियाली
धरती पर छानेवाला है अंधेरा
बुरा फंसा बेचारा
नहीं दिखती राह
बस एक आह
आखिर क्यों पैदा हुआ इंसान

1 टिप्पणी:

  1. बहुत खूब कौस्तुभ जी, मेरा अंदाजा सही निकला कि आप थोड़ा हटकर, थोड़ा गहराई से सोचने वाले इंसान हैं...सिलसिला कायम रखिए, शुभकामनाएं।
    आशीष.

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