सोमवार, 12 अक्तूबर 2009

बिंब और प्रतिबिंब

...
रोशनी के उजाले में
बना है प्रतिबिंब
सच्चाई की छाया
में छुपा है जीवन का बिंब
कड़क धूप की कंटीली चमक
बिंब को बेधने की करती है कोशिश
सूर्य की किरणों से
बार-बार लगतार
लड़ता है बिंब
चल रहा है चिरंतन युद्ध
बिंब को घेरते हैं
सूर्य के बाण
रश्मियों के रंग से
घिरा संग्राम
सिर से टपकती
पसीने की बूंदें
पिघलता है आसमान
क्षय होती है ऊर्जा
या
कुंदन बनता है बदन
मेहनत की मार से
भूख से लाचार
जीवन का कारोबार
लगातार..

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