गुरुवार, 31 अक्टूबर 2024

ग्लोबल होती दिवाली

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#दिवाली भारतीयों का पर्व है और दुनिया भर में रह रहे भारतीय चाहे जहां भी हों, बड़े उत्साह और उमंग से इसे मनाते हैं। दुनिया के विभिन्न देशों में भारतीय दूतावासों में भी दिवाली का आयोजन होता है जो स्वाभाविक है। लेकिन दूसरे देशों में सरकारी स्तर पर दिवाली से जुड़े उत्सव का आयोजन इसके प्रति दुनिया में बढ़ते रुझान को प्रकट करता है। इसका बड़ा कारण तमाम देशों में भारतीयों और भारतवंशियों की बढ़ी हैसियत ही है। अमेरिका में हिंदू मंदिरों में और भारतवंशियों के संगठन जगह जगह दिवाली से जुड़े कार्यक्रम किए जाते हैं तो पिछले कई वर्षों से अमेरिका के राष्ट्रपति निवास व्हाइट हाउस में भी धूमधाम से दिवाली समारोह का आयोजन हो रहा है। अमेरिका के न्यूयॉर्क में इस बार वर्ल्ड ट्रेड सेंटर को दिवाली की प्रतीकात्मक लाइटिंग से रोशन किया गया तो साथ ही साथ वहां के प्रशासन ने पहली बार स्कूलों में दिवाली की छुट्टी की घोषणा की। इधर नई दिल्ली में भारत में अमेरिका के राजदूत एरिक गार्सेटी भी दूतावास में दिवाली उत्सव में बड़े उत्साह से शामिल हुए।
वहीं ब्रिटिश राजधानी लंदन में भी दिवाली मेले का आयोजन किया गया। तो दिवाली के प्रति सरकारी रुझान भी दिखा। प्रख्यात साहित्यकार तेजेन्द्र शर्मा ने लंदन से फेसबुक पर सूचना दी - "मित्रो, आज पहली बार हमारी Overground Railways ने यात्रियों को दीपावली की शुभकामनाएं दीं और मिठाई भेंट की।हम भारतवंशियों के लिए गर्व का पल है।" 
ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, यूरोप के अन्य देशों और पश्चिम एशिया और खाड़ी देशों में भी अच्छी भारतीय आबादी होने के कारण दिवाली उत्सव मनाने की खबरें आती हैं जबकि फ़िजी, मॉरिशस, ट्रिनिडाड टोबैगो जैसे देशों में भारतीय गिरमिटिया आबादी के कारण दिवाली तो वहां की परंपरा का हिस्सा है।
भारत के अलावा और भी देशों में दिवाली जैसे दीपों और रोशनी के त्योहार मनाए जाते हैं, जिनके नाम अलग हो सकते हैं और टाइमिंग अलग हो सकती है। 
लेकिन जब भारत में दीपावली मनाई जाती है तब दूसरे देशों में भी भारतीय समुदाय अपनी सांस्कृतिक परंपरा जारी रखते हुए इसे मनाते हैं। परन्तु, अब यह त्योहार केवल भारतीय समुदाय तक सीमित नहीं रहा है बल्कि विभिन्न देशों की सरकारें और प्रशासन भी इसमें रुचि ले रहे हैं क्योंकि उनके यहां रह रहे, कामकाज कर रहे और उनकी समृद्धि में योगदान दे रहे भारतीय लोग भी आखिर उनका अभिन्न अंग बन चुके हैं। एक और खास बात यह भी है कि दुनिया में भारत की साख बढ़ी है, सम्मान बढ़ा है। इसीलिए विभिन्न देशों के राष्ट्राध्यक्ष दिवाली और होली पर भारतीय लोगों और भारतीय राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री को संबोधित करके ऐसे पर्व-त्योहार पर बधाई और शुभकामनाएं देने में पीछे नहीं रहते। यह सुखद स्थिति है जो दुनिया में भारत और भारतीयों के बढ़ते असर को इंगित करती है। © कुमार कौस्तुभ 

बुधवार, 23 अक्टूबर 2024

५ साल बाद औपचारिक मुलाकात, क्या बनेगी बिगड़ी बात?

भारत-चीन के आपसी रिश्तों के लिहाज से २३ अक्टूबर २०२४ की तारीख तवारीख में दर्ज हो गयी है, क्योंकि इसी दिन चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की औपचारिक बैठक पांच साल के लंबे अंतराल के बाद हुई। हालांकि २०१४ से २०२३ के बीच भी भारत और चीन के तनाव के बीच दोनों नेताओं की मुलाकात अंतरराष्ट्रीय मंचों पर होती रही लेकिन २०१९ के बाद उनकी पहली द्विपक्षीय वार्ता २०२४ में ही हुई है।
ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दरम्यान रूस के कजान में हुई इस बैठक की अहमियत इसलिए भी है कि इससे चंद दिनों पहले ही भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास सीमा विवाद सुलझाने पर सहमति की खबरें आईं। भारतीय पक्ष ने इस बाबत बढ़ चढ़कर बयान दिए जबकि चीनी पक्ष इस पर गोलमोल बोलकर निकल गया।
 कजान में मुलाकात में पीएम मोदी ने सीमा पर शांति की आवश्यकता पर बल दिया और विवाद सुलझाने पर सहमति का जिक्र किया, लेकिन जिनपिंग केवल इतना ही बोल कर निकल गये कि दोनों देशों के बीच संवाद और सहयोग मजबूत होना चाहिए।
इससे पहले भी सीमा विवाद सुलझाने पर सहमति के मामले पर चीन ने ज्यादा कुछ नहीं कहा था और अब जिनपिंग भी इस मुद्दे पर चुप ही दिखे। 
दिलचस्प यह भी है कि जिनपिंग और मोदी की बैठक से पहले कई बार रूस के राष्ट्रपति पुतिन दोनों नेताओं के साथ दिखे जिससे यही संदेश गया है कि मोदी और जिनपिंग की बैठक रूस ने प्रायोजित की और रूस ने दोनों देशों के रिश्ते पर पड़ी बर्फ पिघलाने का प्रयास किया है। लेकिन हकीकत क्या है? अगर रूस की कोई भूमिका है भी तो क्या जिनपिंग और उनकी सरकार का भारत से संबंध सामान्य करने को लेकर रुख सकारात्मक है? ऐसा नहीं लगता। 
चीन संवाद और सहयोग की बात करता है लेकिन दोनों देशों के बीच कोर इश्यू पर बोलने से कतराता है। ऐसा लगता है जो भारत का कोर इश्यू है उसे चीन कोई मुद्दा मानता ही नहीं। शायद इसीलिए भूलकर भी LAC पर कंप्लीट डिस-इनगेजमेंट की बात भी नहीं करता ताकि कभी मीडिया इस सिलसिले में चीन का हवाला न दे सके। चीन का यह रवैया तो साफ साफ यही जाहिर करता है कि उसके तेवर बदले नहीं हैं। आने वाले कुछ दिनों में तस्वीरें और साफ होंगी जिससे चीन की असली मंशा क्या है यह पता चलेगा, क्योंकि २०१९ और २०२० का घटनाक्रम बहुत पुराना नहीं है। तो आखिर क्या चाहता है चीन, यह जानने के लिए अभी और इंतजार करना होगा। एक चीनी कहावत है - To win the battle, retain the surprise, और चीन हैरान करने में माहिर है, इससे भला कौन इनकार कर सकता है। © कुमार कौस्तुभ