रामपुर गांव की सुबहें कोयल की कुहू से शुरू होती थीं, पर उस साल नवंबर की हवा में कुछ और भी घुला था—चुनाव का बुखार, वादों की धूल और अनकही आशंकाओं की नमी। सोन नदी का किनारा सुबह की धूप में मिट्टी की सोंधी खुशबू उड़ाता, पर उस खुशबू में अब बारूद की हल्की सी गंध भी मिलने लगी थी। आर्यन कुमार हर सुबह खेतों की मेड पर चलता, किसानों के साथ बैठता, उनकी हथेलियों की दरारें पढ़ता—वह इंजीनियर था, पर उसकी उंगलियाँ अब सिर्फ ब्लूप्रिंट नहीं, दिलों की नक्शे बनाती थीं। आम के पुराने पेड़ तले बनी बेंच उसका दफ्तर थी, जहाँ वह रात-रात भर सोलर पैनल के डिजाइन बनाता, स्कूल के लिए कंप्यूटर का बजट जोड़ता और नदी पर पुल की नींव की कल्पना करता। उसका नारा था—गांव की मिट्टी, शहर की रोशनी—पर उसकी आँखों में एक पुराना दर्द भी चमकता था, जो कोई नहीं पढ़ पाता।उस दिन प्रिया शर्मा की जीप धूल का गुबार उड़ाती गांव में घुसी। पटना के चमचमाते स्टूडियो से निकली थी, पर उसकी नीली साड़ी में अब गांव की मिट्टी लिपटने लगी थी। कैमरा थामे वह आर्यन की सभा में पहुंची। सभा छोटी थी—सौ-पचास लोग, पर हर चेहरा उम्मीद से भरा। बच्चे आगे, बुजुर्ग पीछे। आर्यन बोल रहा था, उसकी आवाज में नदी की गहराई थी, “भाइयो-बहनो, दस साल से एक ही वादा—सड़क, बिजली, पानी। पर हर बार बारिश में सड़कें धुल जाती हैं, बिजली की लाइनें टूट जाती हैं, और पानी नदी बनकर बह जाता है। मैं कहता हूं—हम खुद बनाएंगे। वोट दो या साथ दो, जीत हमारी।”प्रिया ने कैमरा बंद किया, माइक थामा। उसकी आवाज में शहर की तेजी थी, “आर्यन जी, आप इंजीनियर हैं। दिल्ली की नौकरी, मोटी तनख्वाह, एसी ऑफिस—सब छोड़कर यहां? राजनीति या नाटक?”सन्नाटा खिंच गया। हवा रुक सी गई। आर्यन नीचे उतरा, धूल भरी चप्पलों से प्रिया के करीब आया। उसकी आँखें सोन नदी जितनी गहरी थीं, पर उस गहराई में एक तूफान छिपा था। “नाटक झूठा होता है, प्रिया जी। मैं सच का अभिनेता हूं। और आप? शहर की चमक में सच्चाई ढूंढती हैं, या सिर्फ टीआरपी?”प्रिया की सांस अटकी। पहली बार कोई उससे सवाल पूछ रहा था, जो कैमरे के पीछे छिपी उसकी आंखों को पढ़ रहा था। सभा खत्म हुई। शाम को नदी किनारे दोनों बैठे। सूरज डूब रहा था, लालिमा नदी में घुल रही थी। आर्यन ने मिट्टी के कुल्हड़ में चाय पिलाई, उसमें अदरक की तेजी थी, गांव की मिट्टी की गर्मी। प्रिया बोली, “मैंने सैकड़ों नेताओं को देखा। सबके पास स्क्रिप्ट। तुम्हारे पास?”आर्यन ने नदी में पत्थर फेंका। लहरें उठीं, फिर शांत हुईं। “स्क्रिप्ट जीवन लिखता है, प्रिया। मैं बस पढ़ता हूं। और कभी-कभी... लिखने की कोशिश करता हूं।”प्रिया हंसी, पर उस हंसी में एक पुराना दर्द था। उस रात उसने बॉस को फोन किया, आवाज कांपी, “यह स्टोरी बड़ी है। एक लड़का, जो क्रांति नहीं—अपने अंदर का तूफान लड़ रहा है।”पर गांव में तूफान बाहर भी मंडरा रहा था। विक्रम सिंह, मंत्री का बेटा, पटना से आया। उसकी काली जीपें, काले चश्मे, काले इरादे। उसने आर्यन को चेतावनी दी, “निर्दलीय मत बन, छोटे। मेरे पिताजी का टिकट है।”आर्यन ने मुस्कुराते हुए कहा, “टिकट वोट से मिलता है, विक्रम भाई। पिताजी से नहीं।”चुनाव प्रचार के लिए आर्यन पटना आया। प्रिया उसके साथ थी, अब कैमरा नहीं—दिल थामे। बस की खिड़की से खेत पीछे छूटते, ऊंची इमारतें सामने आतीं। प्रिया बोली, “पटना तुम्हें निगल लेगा, आर्यन।”आर्यन ने उसका हाथ थामा, “शहर निगलता नहीं, सिखाता है। और मैं सीखने आया हूं—तुम्हारे साथ।”होटल के कमरे में रात गहरी हुई। छत पर पटना की लाइटें नीचे चमकती थीं, जैसे तारे जमीन पर उतर आए हों। प्रिया ने सिगरेट जलाई, उसकी उंगलियां कांप रही थीं। आर्यन ने छीनी, “यह धुआं नहीं, जहर है। तुम्हारी सांसें मेरे लिए कीमती हैं।”प्रिया की आंखें भर आईं, “तुम सब कुछ बदलना चाहते हो?”“नहीं। सिर्फ जो गलत है। और जो टूटा है।”बारिश शुरू हुई। बूंदें तेज, दिल की धड़कन से भी तेज। दोनों सड़क पर भीगते हुए। पहला चुंबन—नम, गर्म, डर और हिम्मत का मिश्रण। प्रिया फुसफुसाई, “मैं प्रेम में डरती हूं, आर्यन। हर बार टूटती हूं।”आर्यन ने उसके गीले बालों को पीछे किया, “डर प्रेम की पहली सीढ़ी है। और मैं तुम्हें गिरने नहीं दूंगा।”अगली रात रैली पर हमला हुआ। विक्रम के गुंडे। लाठियां, पत्थर, चाकू की चमक। भीड़ चीखी। आर्यन ने प्रिया को अपनी बाहों में छिपाया, एक गुंडे का हाथ तोड़ा, दूसरे के पेट में मुक्का मारा। खून बहा—उसका, प्रिया का। अस्पताल में प्रिया रोई, उसकी हथेली आर्यन के खून से सनी थी, “तुम मर सकते थे... मेरे लिए?”आर्यन ने उसकी आंसू पोंछी, “मरना सबको है, प्रिया। जीना चुनना पड़ता है। और मैंने तुम्हें चुना है।”उसी रात प्रिया को लिफाफा मिला। पुरानी तस्वीरें—आर्यन दिल्ली में, एक लड़की के साथ। मुस्कुराती लड़की। प्रिया की सांस रुक गई। “यह कौन है?”आर्यन की आंखें भर आईं। पहली बार उसका चेहरा टूटा। “मेरी बहन, रिया। सोलर प्लांट उसका सपना था। मंत्री ने रोका, पैसे मांगे। उसने मना किया। फिर... एक रात उसने फांसी लगा ली। मैं गांव लौटा—बदला लेने नहीं, इंसाफ करने।”प्रिया ने उसे गले लगाया, उसकी सिसकियां उसके कंधे पर गीली हुईं, “मुझसे क्यों नहीं बताया?”“क्योंकि प्रेम विश्वास मांगता है, सबूत नहीं।”चुनाव नजदीक आया। दोनों गांव लौटे। सोन नदी उफान पर थी, जैसे कोई क्रोधित मां। बाढ़ का खतरा। आर्यन ने प्रचार छोड़ा, गांव बचाया। बच्चे, बूढ़े, गाय-भैंस—सब बोट में। प्रिया ने कैमरा उठाया, लाइव रिपोर्टिंग की, उसकी आवाज कांपी, “यह कोई उम्मीदवार नहीं—यह गांव का बेटा है, जो जिंदगियां बचा रहा है।” देश ने देखा। आंसू आए।रात में जंगल। विक्रम के गुंडे पीछे। अंधेरा, कीचड़, बारिश। आर्यन ने पेड़ से रस्सी बनाई, प्रिया को ऊपर खींचा। गोली चली, उसका कंधा छिला। खून बहा। प्रिया ने अपनी साड़ी फाड़कर पट्टी बांधी, उसकी उंगलियां कांप रही थीं। आग जलाई।आर्यन बोला, उसकी आवाज में दर्द और प्रेम, “प्रिया, जीवन एक नदी है। कभी शांत, कभी उफान। प्रेम उसका किनारा। अगर किनारा मजबूत हो, तो नदी नहीं डूबती।”प्रिया की आंखें लाल, “और अगर किनारा टूटे?”“तो नया बनाओ। मिट्टी से। अपने आंसुओं से।”अगली सुबह प्रिया गायब। विक्रम ने अगवा कर लिया। पुराना किला, पटना के पास। दीवारें नम, हवा में सड़ांध। विक्रम बोला, उसकी हंसी क्रूर, “आर्यन आएगा, तो दोनों मरेंगे।”आर्यन अकेला गया। रात में घुसा। गार्ड्स से लड़ा—एक को लाठी से, दूसरे को मुक्का। उसका कंधा फिर बहा, पर दर्द नहीं लगा। विक्रम से सामना। “तू हार गया।”आर्यन की आंखें जल रही थीं, “नहीं। मैंने प्रिया को चुना। तूने पावर। प्रेम हमेशा जीतता है।”प्रिया ने जेब से रिकॉर्डर निकाला—विक्रम की सारी बातें कैद। पुलिस आई। विक्रम गिरफ्तार। प्रिया आर्यन के गले लगी, उसकी सिसकियां किले की दीवारों से टकराईं।चुनाव का दिन। लाउडस्पीकर गूंजा, “आर्यन कुमार—68 प्रतिशत वोट।”जश्न। ढोल, नाच, आंसू। प्रिया और आर्यन की शादी सोन नदी किनारे हुई। सूरज डूब रहा था, लालिमा नदी में घुल रही थी। प्रिया साड़ी में, आर्यन कुर्ते में। पंडित ने मंत्र पढ़े। आर्यन ने सिंदूर लगाया, उसकी उंगलियां कांपीं। प्रिया की आंखें बंद, आंसुओं से भीगी।विधायक बनने के बाद पहला भाषण। आर्यन की आवाज कांपी, “यह जीत मेरी नहीं—रामपुर की, प्रिया की, रिया की, प्रेम की। हम पुल बनाएंगे, स्कूल बनाएंगे, सपने बनाएंगे। बिहार की मिट्टी में सपने उगते हैं, बस पानी चाहिए—एकता का। प्रेम का।”प्रिया ने चैनल जॉइन किया, लेकिन अब गांव से। उसका शो था—गांव की आवाज। हर रात वह आर्यन के कंधे पर सिर रखती, “तुमने मुझे जीना सिखाया।”पांच साल बाद रामपुर में सोलर लाइटें जलती थीं। स्कूल में कंप्यूटर। नदी पर पुल। आर्यन और प्रिया का बेटा सोनू नदी किनारे खेलता। प्रिया बोली, उसकी आंखें चमक रही थीं, “देखो, हमारा चुनाव।”आर्यन ने उसे गले लगाया, “और हमारी प्रेमकथा। जो कभी खत्म नहीं होगी।”जीवन चुनाव है, प्रेम वोट। डर को हराओ, हिम्मत को चुनो। गांव और शहर की दूरी मन से मिटती है। एक आर्यन और एक प्रिया मिलें, तो बिहार नहीं—पूरा हिंदुस्तान बदल सकता है। प्रेम बदलाव की शुरुआत है, बदलाव प्रेम की गारंटी।
(एआई-ग्रोक से रचित कहानी)



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