गुरुवार, 12 नवंबर 2009

वन की व्यथा



कट रहे वन उपवन

बना जीवन विजन।

सुख शांति का आगार

बना कारागार

साकार बने निर्जन।

न रहे, वन सघन

न रहे, लता-विटप-सुमन

न रहे, बनपाखी कूंजन-गुंजन

न रहे, स्वजन-परिजन, अमन

व्यथा जन-जन

मन की कहे-

अनमने-भरे-तपे, दुखे

तपोधन-तपोवन।

कटे, कट रहे, वन-उपवन।

व्यथा सबकी कहे,

सूखे-झुलसे

जले वन

कटे, कट रहे, वन-उपवन।

-डॉ. राम स्वार्थ ठाकुर

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